Three poems | Swansong of the sea, Sonnet to a pilgrim soul, Erolalia trans. into Hindi by Vijaya Kandpal
नदी का अंतिम गीत
सुना उस रात मैंने
नदी का अंतिम गीत
नाम रहित प्रेमियों की आहें
चुरातीं एक क्षण
जैसे अनंत काल तक|
एक मुसाफिर पक्षी का
शोक-नाद
विराम चिन्ह लगाता
रात की शांति में|
प्रतीक्षित था मैं
दिन के उठने के लिए
महसूस करता धरा की
धडकनें
और आकाश गंगा का स्पंदन|
एटलस की एक ऊँगली ने
शुरू किये कम्पन
और नदी में सुनामी के
पंख फड फडाने लगे|
मृत्यु आई निरर्थक
बिना चेतावनी के
उनकी ओर, जिन्होंने सुने
स्तोत्र
अचेतन में|
उस रात
मैंने सुना नदी का अंतिम गीत
जाने वालो का शोकनाद|
छंद एक तीर्थयात्री के लिए
जब सुबह अपने सुनहरे पंख फैलाती है
और नीले आसमान मैं फैल जाती है अंतहीन गहरायी
तब सुनो हवा का क्षणभंगुर गीत
और जाती हुई ताल को, जो अब तुम कभी नहीं पकड़ पाओगे
भर लो तब अपनी आँखें इस नैसर्गिक सौंदर्य से
निसर्ग, जो शायद तुम्हारे सपनों मैं भी इतना
सुन्दर न हो I
अकेले नहीं हो तुम ओ प्रिय तीर्थयात्री!
दुनिया के लिए भले ही निरर्थक हो चुके हो तुम
पर सुनो
के समय हर एक को इस सीढ़ी तक ले आएगा
एक दिन
जब उनके आँखों की रौशनी धुंधला जाएगी
और उनकी जिन्दगियां भी एक खाली कोष में सड़कर
धूल हो जाएँगी
और उनके उजाले भरे दिन भी तुम्हारी तरह भूत बन जायेंगे
ओ तीर्थयात्री!
श्रृंगार के स्वर
आज रात मैं अबेलार्ड हूँ,
मेरी हेलोईस |
मैं गाऊंगा तुम्हारे गीत भरे होठों,
तुम्हारे उभारों, जंघाओं और मीठे आश्चर्य को|
जब तुम्हारी वस्त्रहीन दावत में,
मेरा हृदय सब प्रतिज्ञाएँ तोड़ देगा|
कूट भी दूंगा देवताओं के कपाल और वक्ष
पाने के लिए लिए तुम्हें
भयभीत नहीं हूँ मैं, मृत्यु हो या समय|
मैं चुम्बनों से आभूषित करूँगा
तुम्हारे हिमालय से उभारों को
होगा ह्रदय मेरा
एवेरेस्ट की ऊंचाइयों पर
जब तुम्हारे गर्वीले उभारों का जोड़ा
फँस जायेगा मेरे अधरों के बीच|
नष्ट करो मुझे आहिस्ता-आहिस्ता प्रिय!
रात की इस मृत्यु की सी शांति में
त्यागते हुए रेशमी वस्त्र गुलाबी टखनों पर|
छुपा लो मुझे कोमलता से
छिपा लो मुझे,
अपने समस्त आकर्षण से
पूर्वी देह में|
देखकर गुलाबों को तुम्हारे गाल के
मैं अवाक् हूँ |
और अवाक् हूँ तुम्हारे अधरों का,
गालों का
और उन्नत उभारों का सोमरस चख कर|
शांत नन्ही कवितायेँ जो गीत बनायेंगी,
मैं गाऊंगा तुम्हारे लिए|
जैसे कि वो ईडन के अंतिम फूल हों ,
जैसे कि वो ईडन के अंतिम फल हों|
मैं समीप आऊंगा तुम्हारे, चांदनी सा सफ़ेद, तारे सा तेज़
थामुंगा तुम्हें|
कोमलता से, सोम्यता से
बिना कुछ आभास के,
खिल उठोगी तुम मेरी छाँव में|
मेरी चमक चमकती हुई तुमपर,
स्वामित्व करती तुम्हारी गुलाबों-सी कोमलता का,
सफ़ेद चमकते गीतों से|
तुम्हारे उन्नत उभार परिंदे हैं, मेरे हाथों के तले
जो मुक्त होना चाहते है, मदमस्त बेदमी से|
तुम्हारे होंठ बेनाम फूल हैं,
ढूंढते हुए उस ज़मीन को जहाँ पर उन्हें अपने,
उदगम का आभास मिले|
तुम्हारी आँखें सुदूर फैले तारे हैं,
जो करीब होते हुए भी दूर हैं,
अपने ही तारामंडल में खोये हुए|
तुम्हारी देह सोम्य मांसल आकाश है,
कालिमा लिए हुए, संगीतमय वक्रो के साथ|
जो श्वास भरते हैं ज़िन्दगी और आग से
ज्यों ही मैं डूबता हूँ तुम्हारी लयपूर्ण गतिविधि में|
मनुष्य, इश्वर और तूफान सब
देखता हूँ मैं
एक साथ, तुम्हारे रहस्यमय ब्रह्माण्ड में|
तुम्हारे यह अनछुए सघन वन ,
हैं, मेरी छाँव में|
मैं, लाल, जामुनी और कठोर लौह सा बन आता हूँ,
और समीप तुम्हारे|
बंद कर लो मुझे, ओ पवित्र प्रेयसी,
बंद कर लो, अपनी सोम्यता में
जैसे एक चिड़िया कैद हो गयी हो तुम्हारी रेशमी उँगलियों में|
फिर तुम भेदी जाओगी गीतों से,
और भिगो दी जाओगी चमकीली ओंस से
सीखोगी नाचना मेरे तले|
और मैं डूब जाऊंगा अमर गहरायी में
तुम्हारे ब्रह्माण्ड में,
जहाँ से मैं आया था|
तुमने मुझे दैवीय किया
और बंद किया तेज़ी से भीतर
अपने सर्वस्व के साथ|
लायीं तुम मेरा पौरुष निसर्ग में|
बहुत मजबूती से तेज़ मेरी देह
नहीं सुन पाई दर्द भरे गीत तुम्हारी आँखों में|
हम डूबे प्रेम में पुनः
एक आश्चर्य पूर्ण रात में
रात,
सिन्दूरी बारिश और प्यार भरे गीतों की|
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